श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 18: संन्यास योग » श्लोक 27 |
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| | श्लोक 18.27  | रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचि: ।
हर्षशोकान्वित: कर्ता राजस: परिकीर्तित: ॥ २७ ॥ | | | अनुवाद | जो कर्मी कर्म तथा कर्मफल में आसक्त रहता है, उन फलों को भोगने की इच्छा रखता है, तथा जो लोभी, सदैव ईर्ष्यालु, अशुद्ध तथा हर्ष-शोक से ग्रस्त रहता है, वह रजोगुणी कहा जाता है। | | The doer who is attached to the action and its fruits and wants to enjoy the fruits and who is greedy, always jealous, impure and disturbed by pleasure and pain is called Rajasi. |
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