मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित: ।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥ २६ ॥
अनुवाद
जो व्यक्ति भौतिक प्रकृति से जुड़े बिना, अहंकार के विरक्त रहते हुए, मनोबल और उत्साह के साथ अपने कर्म को करता है और सफलता या असफलता से डिगता नहीं, वह सात्विक कर्ता कहलाता है।