श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 18: संन्यास योग » श्लोक 23 |
|
| | श्लोक 18.23  | नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषत: कृतम् ।
अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते ॥ २३ ॥ | | | अनुवाद | जो कर्म नियमित है और जो आसक्ति, राग या द्वेष के बिना तथा फल की इच्छा के बिना किया जाता है, उसे सतोगुणी कहा जाता है। | | The action which is regular and is performed without any desire for the fruit of the action, without any attachment, passion or hatred, is called Sattvika. |
| ✨ ai-generated | |
|
|