श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  18.2 
 
 
श्रीभगवानुवाच
काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विदु: ।
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान बोले - सांसारिक इच्छाओं पर आधारित कर्मों का त्याग ही विद्वान लोग संन्यास कहते हैं और सभी कर्मों के परिणामों का त्याग ही बुद्धिमान लोग त्याग कहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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