श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 18: संन्यास योग » श्लोक 19 |
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| | श्लोक 18.19  | ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत: ।
प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि ॥ १९ ॥ | | | अनुवाद | प्रकृति के तीन गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म और कर्म करने वाला तीन प्रकार का होता है। अब मेरे मुख से इनका वर्णन सुनो। | | According to the three qualities of nature, there are three types of knowledge, action and doer. Now listen to them from me. |
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