तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु य: ।
पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मति: ॥ १६ ॥
अनुवाद
इसलिए जो पाँचों कारणों को न मानकर अपने आप को ही एकमात्र कर्ता मानता है, वह निश्चित रूप से बहुत बुद्धिमान नहीं होता है और चीजों को सही रूप में नहीं देख सकता है।