श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  18.15 
शरीरवाङ्‍मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नर: ।
न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतव: ॥ १५ ॥
 
 
अनुवाद
मनुष्य शरीर, मन या वाणी से जो भी सही या गलत कार्य करता है, वह इन पांच कारकों के कारण होता है।
 
Whatever good or bad action a man performs with his body, mind or speech is the result of these five causes.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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