श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  18.14 
 
 
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् ।
विविधाश्च पृथक्‍चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम् ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  कर्म की जगह (शरीर), कर्म करने वाला, विभिन्न इंद्रियां, अनेक प्रकार की चेष्टाएं और अंत में परमात्मा - ये पांच कर्म के घटक हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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