अर्जुन उवाच
सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् ।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ॥ १ ॥
अनुवाद
अर्जुन ने कहा - हे महाबाहो! मैं त्याग के उद्देश्य को समझना चाहता हूँ और हे केशिनिषूदन, हे हृषीकेश! मैं त्यागपूर्ण जीवन (संन्यास आश्रम) के उद्देश्य को भी जानना चाहता हूँ।