सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: ॥ ३ ॥
अनुवाद
हे भरतपुत्र! किसी व्यक्ति का अस्तित्व जो विभिन्न गुणों तले होता है उसके अनुसार ही वह एक विशेष प्रकार की आस्था को विकसित कर पाता है। अपने द्वारा अर्जित गुणों के अनुसार ही मनुष्य विशेष श्रद्धा संपन्न कहा जाता है।