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श्रीमद् भगवद्-गीता
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अध्याय 17: श्रद्धा के विभाग
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श्लोक 25
श्लोक
17.25
तदित्यनभिसन्धाय फलं यज्ञतप:क्रिया: ।
दानक्रियाश्च विविधा: क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभि: ॥ २५ ॥
अनुवाद
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मनुष्य को बिना फल की कामना किये, विविध प्रकार के यज्ञ, तप और दान को ‘तत्’ शब्द का उच्चारण करते हुए संपन्न करना चाहिए। इस तरह के दिव्य कृत्यों का उद्देश्य मनुष्य को भौतिक बंधनों से मुक्त करना है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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