श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 17: श्रद्धा के विभाग  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  17.16 
मन:प्रसाद: सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह: ।
भावसंश‍ुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥ १६ ॥
 
 
अनुवाद
और संतोष, सरलता, गंभीरता, आत्म-संयम और अपने अस्तित्व की शुद्धि मन की तपस्या है।
 
And contentment, simplicity, seriousness, self-control and purity of life—these are the austerities of the mind.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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