श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  16.9 
 
 
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धय: ।
प्रभवन्त्युग्रकर्माण: क्षयाय जगतोऽहिता: ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  ऐसे निष्कर्षों पर पहुँचकर आसुरी प्रवृत्ति वाले लोग जो अपने आप को खो चुके हैं और जिनके पास बुद्धि नहीं है, अनुपयोगी एवं भयावह कामों में लिप्त रहते हैं, जो संसार को नष्ट करने वाले होते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.