श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  16.8 
 
 
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् ।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  लोग कहते हैं कि यह जगत् मिथ्या है, इसका कोई मूलभूत आधार नहीं है और इसका संचालन कोई ईश्वर नहीं करता। उनका तर्क है कि यह कामुक इच्छाओं से पैदा हुआ है और वासना के अलावा कोई अन्य कारण नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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