असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् ।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ॥ ८ ॥
अनुवाद
लोग कहते हैं कि यह जगत् मिथ्या है, इसका कोई मूलभूत आधार नहीं है और इसका संचालन कोई ईश्वर नहीं करता। उनका तर्क है कि यह कामुक इच्छाओं से पैदा हुआ है और वासना के अलावा कोई अन्य कारण नहीं है।