श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  16.7 
 
 
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुरा: ।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  जो आसुरी हैं, वे यह नहीं जानते कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। उनमें न तो पवित्रता है, न उचित व्यवहार और न ही सचाई
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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