श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव » श्लोक 18 |
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| | श्लोक 16.18  | अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: ।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयका: ॥ १८ ॥ | | | अनुवाद | मिथ्या अहंकार, बल, दर्प, काम तथा क्रोध से मोहित होकर राक्षसगण अपने तथा अन्यों के शरीरों में स्थित भगवान् से ईर्ष्या करते हैं और वास्तविक धर्म की निन्दा करते हैं। | | Deluded by false ego, power, pride, lust and anger, demonic persons become jealous of the Lord in their own body and in the bodies of others and criticize real religion. |
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