श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च ।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥ ९ ॥
अनुवाद
जीव इस तरह से एक और स्थूल शरीर धारण करके एक निश्चित प्रकार का कान, आंख, जीभ, नाक और स्पर्श इंद्रिय प्राप्त करता है, जो मन के चारों ओर समूहित होते हैं। इस प्रकार वह इंद्रिय विषयों के एक विशिष्ट समूह का आनंद लेता है।