श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग » श्लोक 9 |
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| | श्लोक 15.9  | श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च ।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥ ९ ॥ | | | अनुवाद | इस प्रकार जीवात्मा एक अन्य स्थूल शरीर धारण करके एक विशिष्ट प्रकार के कान, आँख, जीभ, नाक और स्पर्शेन्द्रिय प्राप्त करता है, जो मन के चारों ओर स्थित होते हैं। इस प्रकार वह इन्द्रियविषयों के एक विशिष्ट समूह का भोग करता है। | | Thus, after taking on another gross body, the soul gets special types of ears, eyes, tongue, nose and sense of touch (skin), which are clustered around the mind. Thus, he enjoys a specific set of sense objects. |
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