शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर: ।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ॥ ८ ॥
अनुवाद
इस संसार में जीव अपनी देहात्मबुद्धि को एक शरीर से दूसरे में वैसे ही ले जाता है, जैसे हवा सुगंध को ले जाती है। इस प्रकार वह एक प्रकार का शरीर धारण करता है और फिर उसे त्याग कर दूसरा शरीर धारण करता है।