श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  15.13 
 
 
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं प्रत्येक लोक में जाकर अपनी शक्ति से सारे लोकों को उनकी कक्षा में स्थिर रखता हूँ। मैं चंद्रमा बनकर सभी वनस्पतियों को जीवन-रस प्रदान करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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