उत्क्रामन्तं स्थितं वाऽपि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् ।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष: ॥ १० ॥
अनुवाद
मूर्ख जीव कभी यह नहीं समझ सकते कि शरीर कैसे छोड़ा जा सकता है और ना ही यह समझ पाते हैं कि प्रकृति के नियमों के अधीन वह किस तरह के शरीर से मिलता है। लेकिन जिनकी आँखें ज्ञान से प्रशिक्षित होती हैं वे यह सब देख सकते हैं।