सत्त्वं सुखे सञ्जयति रज: कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तम: प्रमादे सञ्जयत्युत ॥ ९ ॥
अनुवाद
हे भरतपुत्र! सतोगुण मनुष्य को सुख के बंधन में बांधता है, रजोगुण उसे सकाम कर्म के बंधन में बांधता है, और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढककर उसे पागलपन के बंधन में बांधता है।