श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 14: प्रकृति के तीन गुण  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  14.6 
 
 
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।
सुखसङ्गेन बध्‍नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे पापरहित! सतोगुण अन्य गुणों की तुलना में अधिक पवित्र है। इसलिए यह प्रकाशमान एवं पापकर्मों से मुक्ति दिलाने वाला है। इस गुण में स्थित व्यक्ति सुख और ज्ञान के भाव से बद्ध हो जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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