मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥ २६ ॥
अनुवाद
जो व्यक्ति समस्त परिस्थितियों में अविचलित भाव से पूर्ण भक्ति में तल्लीन रहता है, वह तुरंत ही प्रकृति के गुणों से परे पहुँच जाता है और इस प्रकार ब्रह्म के स्तर पर पहुँच जाता है।