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श्लोक 14.26  |
मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥ २६ ॥ |
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अनुवाद |
जो व्यक्ति सभी परिस्थितियों में अविचलित रहते हुए पूर्ण भक्ति में संलग्न रहता है, वह तुरन्त ही भौतिक प्रकृति के गुणों से परे हो जाता है और इस प्रकार ब्रह्म के स्तर पर पहुँच जाता है। |
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He who engages in perfect devotion with unwavering determination under all circumstances at once transcends the modes of nature and thus reaches the level of Brahman. |
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