श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 14: प्रकृति के तीन गुण  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  14.16 
कर्मण: सुकृतस्याहु: सात्त्विकं निर्मलं फलम् ।
रजसस्तु फलं दु:खमज्ञानं तमस: फलम् ॥ १६ ॥
 
 
अनुवाद
पुण्य कर्म का फल शुद्ध होता है और उसे सतोगुणी कहा जाता है। किन्तु रजोगुणी कर्म का फल दुःख होता है और तमोगुणी कर्म का फल मूर्खता होता है।
 
The result of pious deeds is pure and is called Sattvik. But the result of deeds done in Rajoguna is suffering and deeds done in Tamoguna result in foolishness.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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