श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 14: प्रकृति के तीन गुण » श्लोक 12 |
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| | श्लोक 14.12  | |  | | लोभ: प्रवृत्तिरारम्भ: कर्मणामशम: स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥ १२ ॥ | | अनुवाद | | हे भारत वंशियों में श्रेष्ठ! जब रजोगुण की वृद्धि होती है, तब अत्यधिक आसक्ति, सकाम कर्म, गहन उद्यम तथा अनियंत्रित इच्छाएँ और लालसाएँ प्रकट होती हैं। | |
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