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श्लोक 14.10  |
रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।
रज: सत्त्वं तमश्चैव तम: सत्त्वं रजस्तथा ॥ १० ॥ |
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अनुवाद |
हे भारतपुत्र! कभी-कभी सतोगुण प्रबल हो जाता है और रजोगुण तथा तमोगुण को पराजित कर देता है। कभी रजोगुण सतोगुण तथा तमोगुण को पराजित कर देता है, और कभी अज्ञान सतोगुण तथा रजोगुण को पराजित कर देता है। इस प्रकार सदैव श्रेष्ठता के लिए प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। |
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O son of Bharat! Sometimes Satva Guna defeats Rajo Guna and Tamo Guna and becomes dominant, sometimes Rajo Guna defeats Satva and Tamo Gunas and sometimes it happens that Tamo Guna defeats Satva and Rajo Gunas. In this way there is a continuous competition for superiority. |
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