महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: ॥ ६ ॥
इच्छा द्वेष: सुखं दु:खं सङ्घातश्चेतना धृति: ।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥ ७ ॥
अनुवाद
पांचों महाभूत, अहंकार, बुद्धि, अव्यक्त (तीनों गुणों की अप्रकट अवस्था), दसों इन्द्रियाँ तथा मन, पाँच इन्द्रियविषय, इच्छा, द्वेष, सुख, दुख, संघात, जीवन के लक्षण तथा धैर्य— इन सबको संक्षेप में कर्म का क्षेत्र तथा उसकी अन्त:क्रियाएँ (विकार) माना जाता है।