श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना  »  श्लोक 6-7
 
 
श्लोक  13.6-7 
महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: ॥ ६ ॥
इच्छा द्वेष: सुखं दु:खं सङ्घातश्चेतना धृति: ।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥ ७ ॥
 
 
अनुवाद
पाँच महाभूत, मिथ्या अहंकार, बुद्धि, अव्यक्त, दस इन्द्रियाँ और मन, पाँच इन्द्रियविषय, इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, समुच्चय, जीवन लक्षण और संकल्प - ये सभी संक्षेप में कर्मक्षेत्र और उसकी अंतर्क्रियाएँ मानी गयी हैं।
 
Pancha Mahabhuta, ego, intellect, avyakta (unmanifested state of the three gunas), ten senses and mind, five sense objects, desire, aversion, happiness, sorrow, shock, characteristics of life and patience – all these are briefly called the field of karma and its interactions (vikar).
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.