श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  13.3 
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम ॥ ३ ॥
 
 
अनुवाद
हे भरतवंशी! तुम यह समझो कि मैं ही समस्त शरीरों में जानने वाला हूँ और इस शरीर तथा इसके ज्ञाता को जानना ही ज्ञान कहलाता है। यही मेरा मत है।
 
O descendant of Bharata! You should know that I am also the knower of all the bodies and knowing this body and its knower is called knowledge. This is my opinion.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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