पुरुष: प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् ।
कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥ २२ ॥
अनुवाद
जीव प्रकृति के गुणों के अनुसार ही अपने जीवन को जीता है और प्रकृति के तीनों गुणों का भोग करता है। ऐसा प्रकृति के साथ उसके संगठन के कारण होता है। इस तरह जीव को अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के जीवन प्राप्त होते रहते हैं।