श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  13.21 
 
 
कार्यकारणकर्तृत्वे हेतु: प्रकृतिरुच्यते ।
पुरुष: सुखदु:खानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रकृति को समस्त भौतिक कारणों और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध परिणामों की वजह माना जाता है, इसके विपरीत जीव (पुरुष) को इस सृष्टि में कई अलग-अलग सुख-दुखों के भोग का कारण माना जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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