श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना » श्लोक 20 |
|
| | श्लोक 13.20  | प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् ॥ २० ॥ | | | अनुवाद | भौतिक प्रकृति और जीवों को अनादि समझना चाहिए। उनके रूपान्तरण और पदार्थ के गुण भौतिक प्रकृति की ही उपज हैं। | | Nature and living beings should be considered eternal. Their changes and qualities are born of nature. |
| ✨ ai-generated | |
|
|