श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  13.19 
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासत: ।
मद्भ‍क्त एतद्विज्ञाय मद्भ‍ावायोपपद्यते ॥ १९ ॥
 
 
अनुवाद
इस प्रकार कर्मक्षेत्र (शरीर), ज्ञान और ज्ञेय का संक्षेप में वर्णन मेरे द्वारा किया गया है। केवल मेरे भक्त ही इसे भली-भाँति समझकर मेरे स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं।
 
Thus I have briefly described the field of action (body), knowledge and the knowable. Only my devotees can understand this completely and thus attain my nature.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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