श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना » श्लोक 18 |
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| | श्लोक 13.18  | ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमस: परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥ १८ ॥ | | | अनुवाद | वे समस्त प्रकाशमान वस्तुओं में प्रकाश के स्रोत हैं। वे भौतिक अंधकार से परे हैं और अव्यक्त हैं। वे ज्ञान हैं, वे ज्ञान के विषय हैं और वे ज्ञान का लक्ष्य हैं। वे सबके हृदय में स्थित हैं। | | He is the source of light of all luminous things. He is beyond the physical darkness and is unperceivable. He is knowledge, the knowable and the object of knowledge. He is situated in the heart of everyone. |
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