श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना » श्लोक 17 |
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| | श्लोक 13.17  | अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् ।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥ १७ ॥ | | | अनुवाद | यद्यपि परमात्मा समस्त प्राणियों में विभाजित प्रतीत होता है, किन्तु वह कभी विभाजित नहीं होता। वह एक ही रूप में स्थित है। यद्यपि वह प्रत्येक जीव का पालनकर्ता है, किन्तु यह समझना चाहिए कि वह सबका भक्षण और विकास करता है। | | Although the Supreme Being appears to be divided among all living beings, He is never divided. He exists in one form. Although He is the preserver of every living being, it should be understood that He is the destroyer of all and the giver of birth to all. |
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