श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना » श्लोक 14 |
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| | श्लोक 13.14  | सर्वत: पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वत:श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥ १४ ॥ | | | अनुवाद | सर्वत्र उनके हाथ-पैर, सर्वत्र उनकी आँखें, सर्वत्र उनके सिर और सर्वत्र उनके कान हैं। इस प्रकार परमात्मा सर्वत्र व्याप्त होकर विद्यमान है। | | His hands, feet, eyes, head, mouth and ears are everywhere. Thus God is present in all things. |
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