अनपेक्ष: शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथ: ।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ॥ १६ ॥
अनुवाद
मेरा भक्त जो सामान्य काम-काजों पर निर्भर नहीं है, जो पवित्र है, समर्थ है, चिंता रहित है, सभी दुखों से मुक्त है और किसी नतीजे के लिए प्रयत्नशील नहीं है, वो मुझे बेहद प्रिय है।