श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 11: विराट रूप  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  11.50 
सञ्जय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा
स्वकं रूपं दर्शयामास भूय: ।
आश्वासयामास च भीतमेनं
भूत्वा पुन: सौम्यवपुर्महात्मा ॥ ५० ॥
 
 
अनुवाद
संजय ने धृतराष्ट्र से कहा: भगवान कृष्ण ने अर्जुन से इस प्रकार कहकर अपना वास्तविक चतुर्भुज रूप प्रकट किया और अन्त में अपना द्विभुज रूप दिखाया, जिससे भयभीत अर्जुन को प्रोत्साहन मिला।
 
Sanjaya said to Dhritarashtra - After saying this to Arjuna, Lord Krishna revealed His real Chaturbhuj (four-armed) form and finally showed His two-armed form to pacify the frightened Arjuna.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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