अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा
भयेन च प्रव्यथितं मनो मे ।
तदेव मे दर्शय देव रूपं
प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥ ४५ ॥
अनुवाद
मैंने पहले कभी इस विराट रूप का दर्शन नहीं किया, इसे देखकर मैं पुलकित हो रहा हूँ, किन्तु साथ ही मेरा मन भयभीत भी हो रहा है। इसलिए हे देवो के देव, हे जगन्निवास! मुझ पर कृपा करें और अपना पुरुषोत्तम भगवान का स्वरूप पुन: दिखाएँ।