श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 11: विराट रूप  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  11.43 
 
 
पितासि लोकस्य चराचरस्य
त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् ।
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्यो
लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  आप इस सारे चल और अचल संसार के पिता हैं। आप परमपूजनीय श्रेष्ठ आध्यात्मिक गुरु हैं! आप जैसे कोई नहीं, न ही कोई आपके समान हो सकता है। असीमित शक्ति वाले प्रभु, आपके ऊपर तीनों लोकों में कोई नहीं हो सकता!
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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