श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 11: विराट रूप » श्लोक 40 |
|
| | श्लोक 11.40  | |  | | नम: पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते
नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं
सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्व: ॥ ४० ॥ | | अनुवाद | | सामने से, पीछे से और हर तरफ से आपको नमस्कार। हे असीम शक्ति! आप अनंत पराक्रम के स्वामी हैं। आप सर्वव्यापी हैं, इसलिए आप सब कुछ हैं। | |
| |
|
|