द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि
व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वा: ।
दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं
लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥ २० ॥
अनुवाद
यद्यपि आप एक हैं, आकाश-लोक और सारे ग्रह और उनके बीच का सारा स्थान आपके शरीर से व्याप्त है। हे महापुरुष! आपके इस अद्भुत और भयानक स्वरूप को देखकर सारे लोकमंडल भयभीत हैं।