श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 10: श्रीभगवान् का ऐश्वर्य » श्लोक 30 |
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| | श्लोक 10.30  | |  | | प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥ ३० ॥ | | अनुवाद | | दैत्यों में मैं भक्तराज प्रह्लाद हूँ, काल से भी शक्तिशाली हूँ, पशुओं में सिंह हूँ, और पक्षियों में गरुड़ हूँ। | |
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