श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 1: युद्धस्थल परीक्षण एवं अर्जुन विषाद योग  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  1.30 
 
 
न च शक्न‍ोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ।
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  मैं अब यहाँ अधिक समय तक खड़ा नहीं रह सकता। मैं अपने आप को भूल रहा हूँ, और मेरा मन विचलित हो रहा है। हे कृष्ण! केशी दानव के हन्ता! मुझे तो केवल दुर्भाग्य के ही कारण दिख रहे हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.