श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 8: रामचन्द्र पुरी द्वारा महाप्रभु की आलोचना  »  श्लोक 81
 
 
श्लोक  3.8.81 
যাহাঙ্ গুণ শত আছে, তাহা না করে গ্রহণ
গুণ-মধ্যে ছলে করে দোষ-আরোপণ
याहाँ गुण शत आछे, ताहा ना करे ग्रहण ।
गुण - मध्ये छले करे दोष - आरोपण ॥81॥
 
अनुवाद
आलोचक के सैकड़ों अच्छे गुणों से लबरेज़ होने पर भी उन पर विचार नहीं करने की प्रवृत्ति होती है। वह किसी न किसी चाल से उन गुणों में दोष निकाल लेता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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