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श्लोक 3.8.81  |
যাহাঙ্ গুণ শত আছে, তাহা না করে গ্রহণ
গুণ-মধ্যে ছলে করে দোষ-আরোপণ |
याहाँ गुण शत आछे, ताहा ना करे ग्रहण ।
गुण - मध्ये छले करे दोष - आरोपण ॥81॥ |
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अनुवाद |
आलोचक के सैकड़ों अच्छे गुणों से लबरेज़ होने पर भी उन पर विचार नहीं करने की प्रवृत्ति होती है। वह किसी न किसी चाल से उन गुणों में दोष निकाल लेता है। |
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