श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 6: श्री चैतन्य महाप्रभु तथा रघुनाथ दास गोस्वामी की भेंट  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.6.7 
দিনে প্রভু নানা-সঙ্গে হয অন্য মন
রাত্রি-কালে বাডে প্রভুর বিরহ-বেদন
दिने प्रभु नाना - सङ्गे हय अन्य मन ।
रात्रि - काले बाड़े प्रभुर विरह - वेदन ॥7॥
 
अनुवाद
दिन के समय विभिन्न भक्तजनों के साथ रहने के कारण श्री महाप्रभु का मन कुछ समय के लिए अन्यत्र लगा रहता परन्तु रात्रि के समय कृष्ण की विरह पीड़ा तेज़ी से बढ़ने लगती।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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