श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 6: श्री चैतन्य महाप्रभु तथा रघुनाथ दास गोस्वामी की भेंट  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.6.34 
রঘুনাথ আসি’ তবে জ্যেঠারে মিলাইল
ম্লেচ্ছ-সহিত বশ কৈল — সব শান্ত হৈল
रघुनाथ आसि’ तबे ज्येठारे मिलाइल ।
म्लेच्छ - सहित वश कैल - सब शान्त हैल ॥34॥
 
अनुवाद
रघुनाथ दास ने अपने ताऊ और चौधरी की भेंट करवाई। उन्होंने झगड़े को सुलझा दिया और सबकुछ शांतिपूर्ण हो गया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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