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श्लोक 3.6.301  |
‘প্রভুর স্বহস্ত-দত্ত গোবর্ধন-শিলা’
এই চিন্তি’ রঘুনাথ প্রেমে ভাসি’ গেলা |
‘प्रभुर स्वहस्त - दत्त गोवर्धन - शिला’ ।
एइ चिन्ति’ रघुनाथ प्रेमे भासि’ गेला ॥301॥ |
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अनुवाद |
यह विचार करते हुए कि गोवर्धन शिला उन्हें स्वयं श्री चैतन्य महाप्रभु के हाथों किस प्रकार प्राप्त हुई है, रघुनाथ दास सदा प्रेम से अभिभूत रहते थे। |
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