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अध्याय 6: श्री चैतन्य महाप्रभु तथा रघुनाथ दास गोस्वामी की भेंट
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श्लोक 229
श्लोक
3.6.229
“কি লাগি’ ছাডাইলা ঘর, না জানি উদ্দেশ
কি মোর কর্তব্য, প্রভু কর উপদেশ”
“कि ला गि’ छाड़ाइला घर, ना जानि उद्देश ।
कि मोर कर्तव्य, प्रभु कर उपदेश” ॥229॥
अनुवाद
उन्होंने कहा, "मुझे नहीं मालूम मैंने गृहस्थ जीवन छोड़ा क्यों है? क्या है मेरा धर्म? कृपा करके उपदेश दीजिए।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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