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श्लोक 3.6.215  |
জগন্নাথের সেবক যত — ‘বিষযীর গণ’
সেবা সারি’ রাত্র্যে করে গৃহেতে গমন |
जगन्नाथेर सेवक यत - ‘विषयीर गण’ ।
सेवा सा रि’ रात्र्ये करे गृहेते गमन ॥215॥ |
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अनुवाद |
जगन्नाथ जी के कईं सेवक, जिन्हें विषयी कहा जाता है, अपना नियत कार्य पूरा होने के बाद रात में अपने घर वापस लौट आते हैं। |
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