श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 6: श्री चैतन्य महाप्रभु तथा रघुनाथ दास गोस्वामी की भेंट  »  श्लोक 191
 
 
श्लोक  3.6.191 
প্রভু কহেন, — ‘আইস’, তেঙ্হো ধরিলা চরণ
উঠি’ প্রভু কৃপায তাঙ্রে কৈলা আলিঙ্গন
प्रभु कहेन, - ‘आइस’, तेंहो धरिला चरण ।
उठि’ प्रभु कृपाय ताँरे कैला आलिङ्गन ॥191॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु ने ये शब्द सुनकर बिना देर किए रघुनाथ दास का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “यहाँ आओ।” तब रघुनाथ दास ने उनके चरणकमल पकड़ लिए, किंतु प्रभु जी खड़े होकर अपनी अहैतुकी कृपा से उन्हें गले लगा लिया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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